प्राणायाम
प्राणायाम, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "प्राण" (श्वास) और "आयाम" (नियंत्रण)। इसे हिंदी में श्वासयाम भी कहा जाता है। प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसमें श्वास की प्रक्रिया को नियंत्रित करके प्राणिक शक्ति को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। यह योगी आध्यात्मिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए किया जाता है।
प्राणायाम के द्वारा हम अपने श्वास को गहराते हैं, उसे रोकते हैं और अच्छे ढंग से छोड़ते हैं। इसके फलस्वरूप हमारे श्वास-नली के अंदर अधिक ऑक्सीजन पहुंचती है और प्राणिक शक्ति उत्पन्न होती है। यह श्वास के साथ मन को भी नियंत्रित करने में सहायता करता है और मेंटल क्लेरिटी (मानसिक स्पष्टता) को बढ़ाता है। प्राणायाम श्वास के माध्यम से प्राण की निगरानी और नियंत्रण करने का एक विशेष तरीका है।
प्राणायाम एक प्राचीन योगिक अभ्यास है जिसे सांस के नियंत्रण और विस्तार पर ध्यान केंद्रित करके किया जाता है। यह एक प्रकार का अध्यात्मिक व्यायाम है जिसे शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। प्राणायाम से शरीर में ऊर्जा की प्रवाह बढ़ाई जाती है और मानसिक शांति और ध्यान की अवस्था में ले जाता है।
प्राणायाम कई प्रकार के होते हैं, जैसे कि:- अनुलोम विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम, शीतकारी प्राणायाम, शिताली प्राणायाम आदि।
प्रत्येक प्राणायाम का अपना महत्व होता है और विशेष लाभ प्रदान करता है। योगासन और प्राणायाम का संयोग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
प्राणायाम करने के लिए सबसे पहले सही आसन में बैठें और ध्यान लगाएं। ध्यान लगाने के बाद, नासिकाग्र प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) करना शुरू करें। इसमें नाक के द्वारा श्वास को खींचते हैं और छोड़ते हैं। आप इसे धीरे-धीरे कर सकते हैं और उसे धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं। इसके बाद अन्य प्राणायाम की प्रक्रिया को भी समझें और अपनाएं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम:-
अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:-
अनुलोम-विलोम प्राणायाम को शुरू में 5-10 मिनट तक करें और समय के साथ इसे बढ़ाते जाएं।
भ्रामरी प्राणायाम :-
भ्रामरी प्राणायाम करने के लिए कुछ स्टेप्स हैं:-
भ्रामरी प्राणायाम का लाभ कुछ निम्नलिखित हैं:-
कपालभाति प्राणायाम :-
कपालभाति प्राणायाम करने के कुछ स्टेप्स हैं:-
कपालभाति प्राणायाम के लाभ कुछ निम्नलिखित हैं:-
उज्जायी प्राणायाम :-
यहां उज्जायी प्राणायाम करने की कुछ आसान चरणों की जानकारी है:-
उज्जायी प्राणायाम के कई लाभ हो सकते हैं। यहां उसके कुछ मुख्य लाभों की उल्लेख किया गया है:-
3.श्वास तंत्र का संतुलन:- उज्जायी प्राणायाम से श्वास तंत्र का संतुलन हो सकता है। यह साँस लेने की गहराई को बढ़ाता है और श्वासायाम को मजबूत बनाता है।
4.श्वास नालियों का शोधन:- इस प्राणायाम के द्वारा श्वास नालियों का शोधन हो सकता है, जिससे नाक और गले के अंदर की बंद नालियों को स्वच्छ किया जा सकता है।
5.श्वसन प्रणाली का स्वास्थ्य:- यह प्राणायाम श्वसन प्रणाली को मजबूत बना सकता है और फेफड़ों के क्षेत्र में उच्चारित ध्वनि उत्पन्न कर सकता है।
6.शरीर को ताजगी प्रदान करना:- उज्जायी प्राणायाम शरीर को ऊर्जा का एक अच्छा स्त्रोत प्रदान करता है। यह शरीर को ताजगी और प्राकृतिक उत्साह प्रदान कर सकता है।
7.विषाक्त पदार्थों का निकालना :- यह प्राणायाम शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद कर सकता है। यह श्वास प्रणाली के माध्यम से अनावश्यक तत्वों को बाहर निकाल सकता है।
5.सीतकारी प्राणायाम :-
सीतकारी प्राणायाम एक प्राणायाम प्रक्रिया है जिसे योग और आयुर्वेद की विधियों में उपयोग किया जाता है। यह प्राणायाम प्रक्रिया मुख और नाक के माध्यम से होती है, जिसमें आप अपने मुख के द्वारा हवा को श्वसन द्वारा खींचते हैं। यह आपकी श्वसन प्रणाली को संतुलित करने और मन को शांत करने में मदद करता है।
=>सीतकारी प्राणायाम को इसलिए "सीतकारी" कहा जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान जब आप श्वसन खींचते हैं, तो हवा के संपर्क में आने से मुख के अंदर एक सीतलता की भावना होती है।
=>सीतकारी प्राणायाम को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:-
1.सही आसन में बैठें। आप पूर्ण पद्मासन (योगासन), सुखासन (योगासन) या चेयर पर बैठकर इसे कर सकते हैं। 2.आंखें बंद करें और शांत और स्थिर हो जाएं। 3. अपने मुंह को अपने दांतों के बीच में संयोजित करें। 4.अपनी जीभ के नीचे उंगली रखें। 5.साँस धीरे से और धीरे से खींचें। जब आप साँस खींच रहे हों, तब अपने मुंह से एक सीटिंग ध्वनि "सीत" निकालें। 6.अपनी साँस को धीरे से छोड़ें और ध्वनि को बंद करें। 7.यह प्रक्रिया कुछ समय तक जारी रखें, अधिकांश लोग 2-3 मिनट तक करते हैं।
=>सीतकारी प्राणायाम के लाभों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:-
1.शांति और स्थिरता के अनुभव को बढ़ाने में मदद करता है।2.तनाव को कम करने और मानसिक स्थिति को सुधारने में सहायता प्रदान करता है। 3.मस्तिष्क को शांत करने, मन की चंचलता को नियंत्रित करने और ध्यान को स्थिर करने में मदद करता है। 4.मस्तिष्क की गर्मी को कम करने में सहायता प्रदान करता है।5.थकान, उदासी, चिंता और तनाव को दूर करने में मदद करता है।
6.सीताली प्राणायाम:-
सीताली प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो हमारे शरीर को शीतल और शांति देती है। इस प्राणायाम में हम खाली मुंह उससे फूंक आंतरित करते हैं जिससे शरीर को शीतल लगता है और हमें ताजगी की अनुभूति होती है। इस प्राणायाम को करने से हमारे श्वसन मंद होता है और मन शांत हो जाता है। यह प्राणायाम स्वास्थ्य और तनाव को कम करने के लिए बहुत उपयोगी होता है।
=>यहां कुछ चरणों के बारे में जानकारी है जो सीताली प्राणायाम को करने के लिए आवश्यक हैं:-
1.बैठें या लेट जाएँ:- सीताली प्राणायाम को बैठे या लेटकर करना सबसे अच्छा होता है। यदि आप बैठे हैं, तो सुखासन या पद्मासन आदि आसन चुनें और अपनी सीधी बैठकर रखें।
2.श्वास बनाएँ:- मुंह को थोड़ा खोलें और अपनी जीभ को बाहर निकालें। जीभ को आंखों के सामने स्थित करें। इसे चेंबर के तरह बनाए रखें।
3.सीटलिंग:- अपने दाँतों को संपर्क में ले जाएँ और अपने होंठों को ढंकें। ध्यान रखें कि आपका मुँह संपूर्ण रूप से बंद होना चाहिए, केवल जीभ को बाहर निकाले रखें।
4.श्वास ले:- अपने होंठों के माध्यम से हल्का सा सहानुभूति बनाए रखते हुए नीचे की ओर अवशोषित करें। श्वास को धीरे-धीरे और समान रूप से लें।
5.समाप्ति:- धीरे-धीरे अपने मुँह को बंद करें, अपनी जीभ को अपने मुँह में ले आएं और अपनी सांस को धीरे से छोड़ें। ध्यान रखें कि आप श्वास को धीरे-धीरे छोड़ रहे हैं।
=>इस प्रक्रिया को 5-10 मिनट तक बार-बार दोहराएं।
=>लाभ:- सीताली प्राणायाम को नियमित रूप से करने से श्वासनली को शक्ति मिलती है, मन शांत होता है और तनाव कम होता है। इसके अलावा, यह तापमान को नियंत्रित करने, पाचन को सुधारने और मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
7.ब्रह्मरी प्राणायाम:-
ब्रह्मरी प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो ध्यान और मन की शांति को बढ़ाने के लिए उपयोगी होती है। इस प्राणायाम में, हम श्वास लेते हुए नाक के माध्यम से अपने स्वर को "ब्रह्मरी" की तरह निकालते हैं, जो मधुमक्खी की भंभक जैसी ध्वनि का निर्माण करता है। यह प्राणायाम आपको शांति और स्थिरता की अनुभूति प्रदान करने में मदद करता है।
=>यहां ब्रह्मरी प्राणायाम करने के चरणों की जानकारी है:-
1.आराम से बैठें:- शांत और सुखद वातावरण में आराम से बैठें। आप या तो पद्मासन या सुखासन आसन चुन सकते हैं। अपनी स्पाइनल को सीधा और संतुलित रखें।
2.नाक शुद्धि:- अपने अंगूठे को अपने नाक के दायें नथुने पर रखें और अपने अनामिका को अपने बाएं नथुने पर रखें। इससे आपकी नाक के दोनों नासिकाओं का बंद हो जाएगा।
3.श्वास लें:- गहरी सांस लें और उच्च स्वर में "ओम" का ध्वनि बनाएं। इसे ध्यान से करें और अपने श्वास को सुधारें।
4.अपने कान बंद करें:- अपने दोनों कानों को अपने अंगूठों से ढंक लें। इससे आपकी ध्वनि बाहर ज्यादा निकलेगी और आप अपने श्वास को और अधिक सुन्दरता से निकाल सकेंगे।
5.ब्रह्मरी की ध्वनि निकालें:- श्वास को धीरे से छोड़ें और मधुमक्खी की भंभक जैसी "हम्म्म" की ध्वनि को उच्च स्वर में बनाएं। इसे 5 सेकंड तक बनाए रखें। आप इस प्रक्रिया को 3-5 बार दोहरा सकते हैं।
6.ध्यान और अवस्था में रहें:- ब्रह्मरी की ध्वनि निकालते समय ध्यान और अवस्था में रहें। इसके द्वारा आप मन को शांत कर सकते हैं और अधिक सम्पूर्णता का अनुभव कर सकते हैं।
=>यदि संभव हो, तो रोजाना ब्रह्मरी प्राणायाम करने की कोशिश करें, सुबह और शाम में यह करना अधिक उपयोगी होता है।
=>लाभ:- इस प्राणायाम को करने से आपको मन की शांति, तनाव कम करने, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने और नींद को सुधारने में मदद मिलेगी।
8.उड़गीथन प्राणायाम:-
उड़गीथन प्राणायाम एक प्राणायाम की विधि है जो हिन्दी भाषा में उपयोग होती है। इस प्राणायाम को आपके शरीर के विभिन्न लाभों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस प्राणायाम के नाम में "उड़" शब्द का अर्थ होता है उड़ान लेना या ऊँचाई तक पहुंचना और "गीथन" शब्द का अर्थ होता है गीत के समय के रूप में श्वास लेना। इसलिए, इस प्राणायाम में श्वास की गति को ऊँचाई तक बढ़ाने का उद्देश्य होता है।
=>इस प्राणायाम को करने के लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:-
1.एक सुविधाजनक आसन चुनें, जैसे कि पद्मासन (योगिक आसन) या सुखासन (सुखी बैठने का आसन)। अपनी स्पाइन रेखा को सीधी रखें और शरीर को आराम से स्थित करें। 2.आँखें बंद करें और ध्यान केंद्रित करें। 3.अपने दाहिने नाक के बाहरी नथुने को अपने दाहिने हाथ के उंगली के सामरिक अंगूठे से ढक दें। दाएं हाथ की मुद्रा को "विश्वास मुद्रा" कहा जाता है। 4.अब अपने दाहिने नाक से गहरी साँस लें, धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक। श्वास को सीमित न करें, बल्कि इसे स्वाभाविक ढंग से बाहर जाने दें। 5.साँस को खींचते समय अपने मन में "उड़" का ध्यान रखें। आवश्यकता अनुसार, आप अपने मन में किसी चित्र के साथ या मन्त्र के साथ भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। 6.श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते समय, आपको "गीथन" का ध्यान रखना है। यानी, आपको लगातार ध्यान देना होगा कि श्वास के बाहरी और अंतर्निहित गति को बढ़ाने के लिए उच्च और स्पष्ट श्वास ले रहे हैं। 7.श्वास को पूरी तरह से छोड़ें और फिर से साँस लेने से पहले एक छोटी समयावधि के लिए रुकें। इसे एक पूर्ण समयावधि तक बढ़ाएं जब आप अभ्यास में सजग महसूस करें।
=>आप उड़गीथन प्राणायाम को अपनी अभ्यास योग श्रेणी में रोज़ाना कर सकते हैं।
=>लाभ:- यह आपके श्वासनली को मजबूती देता है, मन को शांत करता है और चिंता को कम करने में मदद करता है
9.शांति प्राणायाम:-
शांति प्राणायाम एक प्राणायाम की विधि है जो हिंदी भाषा में उपयोग होती है। इस प्राणायाम का उद्देश्य शांति, स्थिरता, और मानसिक तनाव को कम करना होता है। इस प्राणायाम के माध्यम से हम अपने मन को शांत, सक्रिय और स्थिर बनाते हैं और अधिक समर्पित और उदार व्यक्ति बनते हैं।
=>शांति प्राणायाम को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:-
1.एक सुविधाजनक आसन चुनें, जैसे कि पद्मासन (योगिक आसन) या सुखासन (सुखी बैठने का आसन)। ध्यान रखें कि आपकी पीठ सीधी रहे और शरीर को सुखी और स्थिर बनाए रखें। 2.आँखें बंद करें और ध्यान केंद्रित करें। अपने मन को अन्य विचारों से हटाकर वर्तमान क्षण में स्थिर रखने का प्रयास करें।3.अपने मुख को सुनिश्चित करें कि चेहरे के सभी भाग संकोचित हो रहे हैं और चेहरे की मांसपेशियों में कोई तनाव नहीं है। 4.सुस्ती से और समय लेते हुए अपने दाहिने नाक से साँस लें। साँस को गहराई तक लेकर जाएँ और फिर धीरे-धीरे उसे छोड़ें।5.श्वास के बाद, थोड़ी देर तक श्वास को बंद रखें। इस समय ध्यान को अपनी साँस के गति और मानसिक शांति पर केंद्रित करें। 6.अब अपने दाहिने नाक से बाहर अंतराल के साथ श्वास लें। फिर धीरे-धीरे उसे छोड़ें।
=>इस प्रक्रिया को एक पूर्ण समयावधि तक बार-बार दोहराएं। ध्यान दें कि आपका श्वास सुस्त और गहरा हो रहा है और ध्यान को शांति, समृद्धि और स्थिरता पर लगाए रखें।
=>लाभ:- शांति प्राणायाम को नियमित रूप से अभ्यास करने से आपके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह तनाव को कम करता है, मन को शांत करता है और ध्यान को स्थिर करने में मदद करता है। इसके अलावा, यह संक्रमण की सुरक्षा को बढ़ाने, रक्तचाप को नियंत्रित करने, और मानसिक स्थिरता को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
10.नाड़ीशोधन प्राणायाम:-
नाड़ीशोधन प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अभ्यास है जो दिल की बीमारियों को कम करने, तनाव को दूर करने और मन को शांत करने में मदद करता है। यह प्राणायाम नाड़ीशोधन तकनीक पर आधारित है, जिसमें संजीवनी नाड़ी और इडा नाड़ी को संतुलित करने का प्रयास किया जाता है।
=>यहां नाड़ीशोधन प्राणायाम के कुछ मुख्य तत्व हैं:-
1.आसन:- नाड़ीशोधन प्राणायाम के लिए आरामदायक आसन जैसे सुखासन, पद्मासन या वज्रासन अपनाए जाते हैं।
2.श्वास प्रश्वास की गति:- यह प्राणायाम श्वास की गति को संयमित करने पर आधारित है। आपको नीचे श्वास लेने के बाद धीरे से उच्च और फिर से धीरे से नीचे श्वास छोड़ना होता है।
3.नासिका प्राणायाम:- इसमें दाहिनी नाक से सांस लेने और बाएं नाक से निकालने की विधि होती है। ध्यान को आसान बनाने के लिए आप इसे अधिक देर तक बार-बार बढ़ा सकते हैं।
=>मन्त्र:- इस प्राणायाम के दौरान, आप किसी मन्त्र या ध्येय का जाप कर सकते हैं, जैसे "ओम" या "सो हम"।
=>नाड़ीशोधन प्राणायाम के लाभ:- मन की शांति, तनाव कम करना, मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाना और मनोवैज्ञानिक संतुलन समेत कई शारीरिक और मानसिक लाभ शामिल हैं। नियमित रूप से नाड़ीशोधन प्राणायाम करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
11.सुरभि प्राणायाम:-
सुरभि प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो शांति, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए जानी जाती है। इस तकनीक का उद्देश्य श्वास और प्राणवायु को संतुलित करके मन को शांत करना है। यह प्राणायाम अद्वैत वेदांत दर्शन के अनुसार विकसित किया गया है और साधकों को अद्वैत ज्ञान और सत्य के साथ जोड़ने का उद्देश्य रखता है।
=>सुरभि प्राणायाम का विधान निम्नलिखित है:-
1.बैठ योगासन में समय लें। पीठ को सीधा रखें और आंखें बंद करें। 2.अपने दायें नाकद्वारा अंदर लेने के लिए दाहिनी उंगली के साथ अपने नाक को बंद करें। 3.धीरे-धीरे समय लेकर दाहिने नाक से शांश लें। शांश को गहरी और धीमी रफ्तार से लें। 4.शांश को पूर्णतया बाहर निकालें और सांस लेने के लिए दाहिने नाक को खोलें। ध्यान दें कि आपकी शांश का पूर्ण निकास और प्रवेश सुगम होना चाहिए। 5.इस प्रक्रिया को एक नियमित और समानांतर ध्यान द्वारा प्रतिरोध किए बिना 5-10 मिनट तक जारी रखें।
=>लाभ:- सुरभि प्राणायाम को नियमित रूप से करने से शरीर, मन और आत्मा को शांति, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास मिलता है। यह प्राणायाम मन को स्थिर करता है और चिंता, तनाव और उदासीनता को कम करने में मदद करता है। साथ ही, इस प्राणायाम से प्राणवायु की संतुलना होती है, जो शरीर के ऊर्जा को बढ़ाती है और उसके कार्यक्षमता को सुधारती है।
12.बाह्य प्राणायाम:-
बाह्य प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो हमारी श्वास विधि को नियंत्रित करने और प्राणवायु को संतुलित करने में मदद करती है। यह विशेष रूप से श्वासलेन और श्वासायाम पर केंद्रित होता है। बाह्य प्राणायाम में हम अपने श्वास को नियंत्रित करके उसे गहराई से और धीमी गति से लेते हैं, इसे श्वासायाम कहा जाता है।
=>बाह्य प्राणायाम का विधान निम्नलिखित है:-
1.शुरुआत में, बैठ योगासन लें। आराम से बैठें और स्पाइनल कोर्ड को सीधा रखें। 2.अपने हाथों को संतुलित रखें। प्राथमिकता दें कि आपके हाथ आराम से स्थित हों और हाथ के मुद्रा शांत और सुखद हों। 3.ध्यान दें कि आपकी साँस की गति धीमी और सावधानीपूर्वक होनी चाहिए। साँस गहराई से लें और इसे धीरे-धीरे बाहर निकालें। 4.श्वास निकालने के बाद, संकोच करें और सांस लेने के लिए प्रयास करें। सांस अवधि को धीरे-धीरे बढ़ाएँ ताकि आप सांस को गहराई से और पूर्णतया निकाल सकें। 5.बाह्य प्राणायाम को समानांतर और समय-सीमित ध्यान के साथ करें। शुरुआत में, आप 5 मिनट तक यह प्राणायाम कर सकते हैं और फिर धीरे-धीरे समय बढ़ा सकते हैं।
=> लाभ:- बाह्य प्राणायाम करने से हमारी श्वासलेन प्रणाली स्वस्थ और संतुलित होती है। यह हमारे श्वास द्वारा शरीर में प्राणवायु को संतुलित करने की क्षमता को बढ़ाता है और मन को शांत करने में मदद करता है। इसके अलावा, यह प्राणायाम श्वासलेन को नियंत्रित करके स्थिरता और ध्यान की स्थिति को बढ़ाने में मदद करता है।
13.सवरोपास्थान प्राणायाम:-
एक प्रकार का प्राणायाम है जो योग और ध्यान का महत्वपूर्ण अंग है। यह प्राणायाम शवासन और प्राणायाम के एक संयोजन के रूप में जाना जाता है। इसे ध्यान और स्थिरता की अवस्था को प्राप्त करने के लिए प्राकट्य करने का एक तरीका माना जाता है।
=>सवरोपास्थान प्राणायाम का नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है। "सव" शब्द का अर्थ होता है शांति और शांति का एक अवस्था को दर्शाता है। "उपास्थान" शब्द का अर्थ होता है अवस्था या स्थिति। और "प्राणायाम" शब्द का अर्थ होता है प्राण का नियंत्रण या नियंत्रणित श्वासन। इस प्राणायाम का उद्देश्य स्वस्थ शरीर, मन, और आत्मा को स्थिर और शांत करना है।
=>सवरोपास्थान प्राणायाम का विधान निम्नलिखित है:-
1.एक सुखासन धारण करें और अपनी आंखें बंद करें। 2.अपनी संवेदनाओं को अपने श्वास और श्वासन के अंतर्गत ध्यान दें। 3.अपने ध्यान को वायुमंडल के साथ जोड़ें और अपने श्वास के आगमन और अपान को महसूस करें। 4.ध्यान देते हुए, अपने श्वास के आगमन और अपान को समायोजित करें। यह एक संयोजन की प्रक्रिया है, जिसमें श्वास के आगमन के दौरान श्वासन को समय पर बांधा जाता है और अपान के दौरान श्वास को समय पर छोड़ा जाता है। 5.इस प्रक्रिया को ध्यानपूर्वक करें और स्वस्थ श्वासन धारण करें। 6.कुछ समय तक इस अवस्था में रहें, शांत और स्थिर होने का आनंद उठाएं।
=> लाभ:- इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास शांति, सुख, और मन की स्थिरता में सहायता कर सकता है। इसे नियमित रूप से करने से मन को शांति और स्थिरता मिलती है और ध्यान की गहराई बढ़ती है। इसके अलावा, यह श्वासनली को स्वस्थ रखने, तनाव को कम करने, मस्तिष्क को शांत करने, और सामरिक और मानसिक स्थायित्व को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
14.मूर्च्छा प्राणायाम :-
मूर्च्छा प्राणायाम एक प्राणायाम की प्रक्रिया है जो योग के अंतर्गत किया जाता है। इस प्राणायाम में श्वास को धीरे-धीरे रोककर, नाक के द्वारा प्रवेश करने वाले प्राण को संचालित करने का प्रयास किया जाता है। इस प्राणायाम को मूर्च्छा कहा जाता है क्योंकि इसका अभ्यास करते समय ध्यानिक अवस्था में व्यक्ति को जैसा लगता है, वैसा महसूस होता है।
=>मूर्च्छा प्राणायाम का विधान निम्नलिखित है:-
1.एक सुखासन या पद्मासन धारण करें और आंखें बंद करें।2.अपनी सांस को धीरे-धीरे और सुन्दरता के साथ अंत तक लें।3.सांस रोकें और नाक से प्राण को धीरे-धीरे बाहर निकालें।4.अपनी सांस को निश्वास लेने के बाद भी स्थिर रखें और ध्यान को इस प्राण की गति पर स्थानित करें। 5.इस अवस्था में रहें, ध्यान और चित्त को एकाग्र करें। 6.ध्यान द्वारा समय के साथ अभ्यास करते रहें और आनंद उठाएं।
=>लाभ:- मूर्छा प्राणायाम को नियमित रूप से करने से शरीर, मन और आत्मा की सामरिक और मानसिक शांति होती है। यह प्राणायाम मन को शांत करके स्थिरता और ध्यान को बढ़ाता है। यह तनाव को कम करने, मन को शांत करने, चिंता और चिंताओं से मुक्ति प्रदान करने, एकाग्रता को विकसित करने और मेंटल क्लैरिटी को बढ़ाने में सहायता कर सकता है।
15.बाहिरंग प्राणायाम :-
बाहिरंग प्राणायाम एक प्रकार का प्राणायाम है जो योग में प्रयोग होता है। इस प्राणायाम में श्वास को बाहरी रूप से निकालने और अपने श्वासनली को संचालित करने का प्रयास किया जाता है। यह श्वास के बाहरी नियंत्रण को सुधारक प्रणाली को सक्रिय करने में मदद करता है।
=>बाहिरंग प्राणायाम का विधान निम्नलिखित है:-
1.एक सुखासन या पद्मासन में बैठें और आंखें बंद करें। 2.गहरी साँस लें और श्वास को बाहर की ओर निकालें।3.श्वासनली को अच्छी तरह से संचालित करने के लिए ध्यान केंद्रित करें। 4.श्वास को धीरे-धीरे और समय पर निकालें। 5.निश्वास को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद ध्यान दें और आनंद उठाएं। 6.कुछ समय तक इस अवस्था में रहें और मन को शांत करें।
=>लाभ:- बाहिरंग प्राणायाम के नियमित अभ्यास से श्वासनली का स्वास्थ्य बढ़ता है, वायुमंडल को शुद्ध करता है, और श्वसन प्रणाली को सुधारता है। इसके अलावा, यह प्राणायाम तनाव को कम करने, मन को शांत करने, चिंताओं से मुक्ति प्रदान करने, मनोवृत्ति को नियंत्रित करने, और आत्मज्ञान को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।
16.अग्निसार प्राणायाम:-
अग्निसार प्राणायाम हिंदी में एक प्राणायाम तकनीक है जो योग का हिस्सा है। "अग्नि" का अर्थ होता है "आग" और "सार" का अर्थ होता है "उद्धार"। इस प्राणायाम का उद्धार अर्थ होता है "आग का उद्धार" या "आग को बढ़ाने की प्रक्रिया"। इस प्राणायाम का मुख्य लक्ष्य नाभि से आग को जलाने का होता है और इसके माध्यम से मनोविज्ञानिक और शारीरिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
=>यहां अग्निसार प्राणायाम को करने के लिए चरणों को दिया गया है:-
1.सबसे पहले, एक सुखासन (योगासन) में बैठें और आपकी स्पाइनल को सीधा और संतुलित रखें। 2.अपने हाथों को जंग्ह के पास रखें और उंगलियों को घुटनों पर बांधें। 3.अपनी आँखें बंद करें और सामान्य श्वास लें। 4.अपनी साँस बाहर की ओर धीरे-धीरे निकालें और ध्यान दें कि आपकी नाभि भी बाहर जाए। 5.अब अपनी साँस को निचले वक्षस्थल तक फेंकें और ध्यान दें कि आपकी नाभि अपने स्थान पर वापस आ रही है। 6. इस प्रक्रिया को 10 से 15 बार दोहराएं।
=>अग्निसार प्राणायाम के लाभों में से कुछ निम्नलिखित हैं:-
1.यह प्राणायाम पाचन तंत्र को मजबूत करता है और आग्नशय की क्रिया को सुधारता है। 2.इससे आपके पाचन तंत्र में सुधार होता है और खाद्य सामग्री को प्रभावी ढंग से पचाने में मदद मिलती है। 3.इस प्राणायाम से आपका मस्तिष्क शांत होता है और मानसिक तनाव को कम करने में मदद मिलती है। 4.यह प्राणायाम आपके पेट की चर्बी को कम करने में मदद कर सकता है और पेट को आकर्षक बनाने में मदद करता है।5अग्निसार प्राणायाम शरीर की ऊर्जा को बढ़ावा देता है और आपको ताजगी और उत्साह प्रदान कर सकता है।
17.अभ्यांतर प्राणायाम:-
अभ्यांतर प्राणायाम एक प्राणायाम का रूप है जो श्वास को नियंत्रित करने पर आधारित है। इस प्रकार के प्राणायाम में श्वास को अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाता है और प्राण शक्ति को एकाग्रता से ले जाने का प्रयास किया जाता है। अभ्यांतर प्राणायाम को ध्यान और धारणा के साथ संयोजित किया जाता है।
=>यहां अभ्यांतर प्राणायाम के कुछ मुख्य तत्व हैं:-
1.प्राणायामी श्वास:- इस प्राणायाम में, व्यक्ति को अंदर से श्वास लेना होता है और उसे धीरे से छोड़ना होता है। यह श्वास को सुव्यवस्थित करने और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।
2.बाह्यांतर कुम्भक:- यह प्राणायाम का एक और प्रमुख तत्व है जिसमें श्वास को बाहरी रूप से नियंत्रित किया जाता है। इसमें श्वास को धीरे से रोका और धीरे से छोड़ा जाता है। इस प्राणायाम में दमन और विश्राम का उपयोग किया जाता है।
3.अतर्मन की संयम:- यह तकनीक ध्यान और धारणा के साथ एकीकृत होती है। इसमें व्यक्ति को विभिन्न मानसिक चित्रों को एकाग्र करना होता है और मन को एकाग्रता और शांति की स्थिति में स्थापित करना होता है।
=>लाभ:- अभ्यांतर प्राणायाम शरीर, मन, और आत्मा के साथ संयोजित होने का एक माध्यम है। यह शरीर को स्वस्थ और मन को शांत रखने में मदद कर सकता है, और साथ ही आत्मा की प्राप्ति और अधिक सुख की प्राप्ति में भी सहायता कर सकता है।
18.सून्यक प्राणायाम:-
सून्यक प्राणायाम एक प्राणायाम की विधि है जो श्वास को नियंत्रित करने पर आधारित है और प्राण शक्ति को संतुलित करने में मदद करती है। इस प्राणायाम में श्वास को रोका और धीरे से छोड़ा जाता है ताकि श्वास की अवधि और गहराई बढ़ सके। इस तरीके के माध्यम से श्वास आंतरिक रूप से अधिक समय तक लिया जा सकता है, जो मन को शांति, ध्यान और आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में ले जाने के लिए मदद करता है।
=>सून्यक प्राणायाम को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:-
1.आरामपूर्वक बैठें:- सबसे पहले, आरामपूर्वक सीधे और शांत रूप से बैठें। आप एक आसन जैसे पद्मासन, सुखासन, या चौकड़ासन का उपयोग कर सकते हैं।
2.श्वास की अवधि बढ़ाएं:- आप नियमित श्वास लेकर धीरे से श्वास की अवधि बढ़ा सकते हैं। पहले धीरे से निम्नांकित गणितीय तरीके का उपयोग करके श्वास की गहराई को बढ़ाएं: 1-2-3-4 (इन गिनती अनुसार) और उसके बाद धीरे से छोड़ें: 4-3-2-1।
3.मन को ध्यान में लाएं:- अपने ध्यान को श्वास के साथ मेल करें। श्वास के प्रत्येक चरण पर ध्यान केंद्रित करें और मन को शांत और एकाग्र बनाए रखें।
4.ध्यान जारी रखें:- श्वास के चरणों को ध्यान और एकाग्रता के साथ निरंतर बनाए रखें। अन्य मानसिक विचारों को ध्यान से हटा दें और सिर्फ अपने श्वास पर केंद्रित रहें।
=>लाभ:- सून्यक प्राणायाम को नियमित रूप से करने से मन को शांति, स्थिरता, और ध्यान की अवस्था में ले जाने का अनुभव होता है। इसे नियमित अभ्यास करने से श्वास के जरिए प्राण शक्ति को संतुलित करने में मदद मिलती है और मन को शांत, चेतना और स्थिरता की अवस्था में ले जाती है।
19.सहज प्राणायाम :-
सहज प्राणायाम एक प्राणायाम की विधि है जो श्वास को नियंत्रित करने और प्राण शक्ति को एकाग्रता से लाने के लिए उपयोगी है। यह प्राणायाम सरल और सुलभ होता है, जिसके लिए आपको विशेष आसन या तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें ध्यान और स्वस्थ श्वास को संयोजित करके श्वास की गति और विस्तार को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
=>सहज प्राणायाम को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:-
1.आरामपूर्वक बैठें:- सबसे पहले, आरामपूर्वक एक स्थिर और आरामदायक आसन में बैठें। आप चाहें तो पद्मासन, सुखासन, वज्रासन, या किसी अन्य सुखद आसन का चयन कर सकते हैं।
2.श्वास की गति को ध्यान में रखें:-अपने श्वास को ध्यानपूर्वक लें। आप अपने श्वास की गति, स्थान, और अवधि को महसूस कर सकते हैं।
3.नियमित और सामान्य श्वास लें:- श्वास को स्वतंत्र और नियमित रूप से लें। ध्यान दें कि आपका श्वास स्वाभाविक रूप से आता जाता है और कोई जोर लगाने की आवश्यकता नहीं है।
4.गहरे और धीमे श्वास लें:-श्वास को धीरे और गहराई से लें। श्वास को गहराई तक आंतरित करने का प्रयास करें और फिर धीरे से छोड़ें। यह श्वास की गति और अवधि को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
5.ध्यान बनाए रखें:-अपने ध्यान को श्वास के साथ संयोजित रखें। मन को श्वास और श्वास को मन के साथ मेल करें। अन्य विचारों को ध्यान से हटाएं और मन को शांत और एकाग्र बनाए रखें।
=>लाभ:- सहज प्राणायाम का अभ्यास आपको मन की स्थिरता, ध्यान, और आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में मदद करता है। यह श्वास को नियंत्रित करके मन को शांत, स्थिर, और सक्रिय बनाने में सहायता प्रदान करता है। यह प्राणायाम सर्वांगसुंदरता, मानसिक चुस्ती, और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
20.सूर्यभेदन प्राणायाम:-
सूर्यभेदन प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो योग में प्रयोग होती है। इस प्राणायाम का नाम "सूर्यभेदन" है क्योंकि इसके द्वारा सूर्यनादी नामक प्राणवायु का संतुलन बढ़ाया जाता है। यह प्राणायाम श्वासायाम दरम्यान किया जाता है, जब दायीं नाक से साँस लेते हैं।
=>इस प्राणायाम को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:-
1.एक सुकूने से बैठें और आंतरिक शांति की एक अवस्था में प्रवेश करें। 2.दाईं नाक के मुख से अंदर खींचें और उसे जितना संभव हो सके लंबा रखें। ध्यान दें कि मुंह के अन्दर श्वास नहीं लिया जाना चाहिए, केवल दायीं नाक के मुख से अंदर खींचें। 3.संगति को स्थिर रखते हुए, नाक से सम्भालकर साँस बाहर छोड़ें। 4.दायीं नाक से साँस लें, नाक के मुख को बंद न करें और आंखें बंद रखें। 5.इस प्रक्रिया को कई बार दोहराएं। सामान्यतः, शुरूआत में आप 5-10 बार तक कर सकते हैं, और जब आपकी अभ्यास क्षमता बढ़ेगी तो इसे बढ़ा सकते हैं।
=>सूर्यभेदन प्राणायाम के कुछ लाभों में शामिल हैं:-
1.यह आपके मस्तिष्क को स्थिर करने में मदद कर सकता है और मानसिक स्थिरता और ध्यान को बढ़ा सकता है। 2.यह श्वास नली को साफ करने और श्वास तंत्र को सुगम बनाने में मदद कर सकता है। 3.इस प्राणायाम को करने से आपका शरीर शीतल हो जाता है और आपकी मानसिक चेतना बढ़ती है। 4.यह आपकी प्राकृतिक श्वास तकनीक को सुधार सकता है और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
21.उद्गीत प्राणायाम:-
उद्गीत प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो योग में प्रयोग होती है। यह प्राणायाम ध्वनि के माध्यम से किया जाता है और शब्दों को गुणवत्तापूर्ण रूप से उच्चारित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। इसका नाम "उद्गीत" है क्योंकि इसके द्वारा मन को उच्च और प्रशांत ध्वनि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
=>इस प्राणायाम को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:-
1.एक सुखी और न्यारा स्थान पर बैठें, जहां आपको आराम हो सके। 2.अपने आँखें बंद करें और एक गहरी सांस लें। 3.धीरे से अपने मुख के माध्यम से उच्चारित आवाज में "ओम" का उच्चारण करें। ध्यान दें कि आवाज को गहराई और शांति के साथ उच्चारित करना है। 4.ध्यान केंद्रित रहें और उच्चारण की ध्वनि को सुनते रहें। अपने मन को आराम से उच्चारण पर ध्यान केंद्रित करें। 5.उच्चारण को धीरे-धीरे समाप्त करें और सांस को धीरे से छोड़ें। 6. आँखें धीरे-धीरे खोलें और ध्यान को आराम से वापस लाएं।
=>उद्गीत प्राणायाम के कुछ लाभों में शामिल हैं:-
1.यह प्राणायाम मन को शांत करने और ध्यान को सुधारने में मदद करता है। 2.यह मन की चंचलता को कम करने और मानसिक स्थिरता को प्राप्त करने में सहायता प्रदान कर सकता है। 3.इस प्राणायाम का अभ्यास करने से मानसिक तनाव कम हो सकता है और चिंता, अवसाद और थकान को दूर करने में मदद मिल सकती है। 4.यह श्वास तंत्र को संतुलित करके श्वास गति को सुधार सकता है और श्वासनली की सेहत को बढ़ा सकता है।
=>लाभ:-यह प्राणायाम वाणी को मधुर बना सकता है और वाणी की गुणवत्ता को सुधार सकता है।