-:योगासन :-
1.प्रवृत्त त्रिकोणासन:-
प्रवृत्त त्रिकोणासन, जिसे "प्रवृत्त त्रिकोणासन" या "परिवृत्त त्रिकोणासन" भी कहा जाता है, एक प्रमुख योगासन है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यह आसन हिप्स, पेल्विस, पीठ, पेट, और पैरों को तानता है और स्थैर्य, लचीलापन, और केंद्रगत संजीवन शक्ति को विकसित करने में मदद करता है।
\ यह आसन चालकता, संतुलन, और शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ आंतरिक और बाह्य नर्व संयंत्र को शांत करने में मदद करता है। यह शांति और मानसिक स्थिरता का अनुभव करने में सहायता प्रदान करता है।
प्रवृत्त त्रिकोणासन को कैसे करें:-
1.पहले ध्यान और सांस के साथ खड़े हो जाएँ।
2.अपने पैरों को थोड़ा दूरी पर रखें, आपके दोनों पैर सीधे हों और शरीर के बीच में लगभग एक धनुष की आकृति बनाएं।
3.अपने दाहिने पैर को आगे और अपने बांएं पैर को धीरे-धीरे दाईं ओर बाहर की ओर घुमाएँ।
4.आपके दोनों हाथों को सीधे रखें, आपके दाहिने हाथ को आगे बढ़ाएँ और अपने बांएं हाथ को धीरे-धीरे बाईं ओर घुमाएँ।
5.आपके सीने को उठाएं और सीधे रखें, अपनी आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए नाभि को अंतिम दिशा में खींचें।
6.आपकी दृष्टि ऊर्ध्वमुखी होनी चाहिए, आपके सिर को थोड़ा धीरे सीधा रखें और नेत्रों को स्थिरता के साथ एक बिन्दु पर ध्यान केंद्रित करें।
7.अपनी सांस को सामान्य रखें और 20-30 सेकंड तक इस स्थिति में बनाए रखें।
8.धीरे-धीरे श्वास छोड़ें और ध्यान बनाए रखें।
9.इसके बाद, अपने पूरे शरीर को धीरे-धीरे वापसी कराएं, आराम से सांस छोड़ें और आराम करें।
आस्वासन:-
आस्वासन, जिसे "आस्वासन" या "प्राणायाम" भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण प्राणायाम तकनीक है जो हिंदी में श्वास प्रवाह का नियंत्रण करने के लिए उपयोग की जाती है। इसका अर्थ होता है "श्वास को नियंत्रित करना" या "श्वासायाम"। आस्वासन प्राणायाम विधि को अभ्यास करने से श्वास को समय और गहराई से नियंत्रित किया जा सकता है और श्वास के साथ शरीर में ऊर्जा को स्थिर किया जा सकता है।
आस्वासन के अनुभव के लिए निम्नलिखित तकनीक का अनुसरण करें:-
1.आराम से सीधे बैठें और सांस छोड़ें। अपनी सांस को सामान्य और गहरी बनाएं।
2.अपने दाहिने नाक के नथुने को अपने उंगलियों से बंद करें, श्वास द्वारा वायु का निकलना रोकें।
3.अपने मुंह को धीरे से खोलें और दाहिने नाक से सम्पूर्ण श्वास को निकालने के लिए आराम से श्वास छोड़ें।
4.दाहिने नाक को बंद करें, उंगलियों से नथुना हटाएं और वायु को दरार के माध्यम से सांसायें।
5.अब बाईं नाक को बंद करें, दाहिने नाक से सांस छोड़ें।
6.इस प्रक्रिया को धीरे-धीरे और सुव्यवस्थित रूप से करें, हर श्वास के साथ समान ध्यान रखें।
लाभ:-
आस्वासन को नियमित रूप से अभ्यास करने से सांस को संतुलित करने, मानसिक स्थिति को स्थिर करने, प्राणशक्ति को जागृत करने, और शांति को प्राप्त करने में मदद मिलती है। यह ध्यान को संगठित करने, अवधारणा क्षमता को विकसित करने, और अंतरंग चेतना को प्रोत्साहित करने में भी मदद करता है।
मर्जरी आसन:-
मर्जरी आसन, जिसे हिंदी में "मार्जरी आसन" भी कहा जाता है, एक प्रमुख योगासन है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यह आसन खेलने वाली बिल्ली के स्थिति को अनुकरण करता है और मानसिक स्थिरता, शांति, और शरीर की संतुलन शक्ति को विकसित करने में मदद करता है।
मर्जरी आसन को कैसे करें:-
1.पूरी तरह से चढ़ाई पर आएं और चारों पैरों को फैलाएं। हथेली को ग्रीष्म लक्ष्य दिशा में रखें और अपने हाथों को बाहर की ओर सीधा रखें।
2.आपके हाथों को कंधों के नीचे लाएं और आपके कमर को नीचे झुकाएं, आपकी सीधी रीढ़ को संतुलित बनाएं। इसे बिल्ली के स्थिति कहा जाता है।
3.अपने सिर को धीरे से नीचे झुकाएं और आपकी दृष्टि को नीचे की ओर समय करें।
4.अब ध्यान से सांस छोड़ें और शान्त रहें।
5.इस स्थिति में कुछ समय बिताएं, सांस को सामान्य करें और शांति महसूस करें।
लाभ :-
मर्जरी आसन का नियमित अभ्यास करने से शरीर की लचीलापन विकसित होती है, पीठ की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है, और श्वास संयंत्र को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। इसका अभ्यास मानसिक स्थिरता को बढ़ाता है, तनाव को कम करता है और मन को शांत करता है। इसके साथ ही, यह पाचन तंत्र को सक्रिय करता है और शरीर को उत्तेजित करने में मदद करता है।
सेतुबंध आसन:-
सेतुबंध आसन, जिसे हिंदी में "सेतुबंध आसन" भी कहा जाता है, एक प्रमुख योगासन है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यह आसन पीठ, पेट, पैरों, और नयंत्रण ग्रंथियों को मजबूत और सुसंगत करने में मदद करता है। इसका नाम इस योगासन की स्थिति से लिया गया है, जिसे एक पुल या सेतु की तरह देखा जा सकता है।
सेतुबंध आसन को कैसे करें:-
1.सीधे लेट जाएं, अपनी पीठ को जमीन पर लगाएं और घुटनों को मोड़ें।
2.अपने पैरों को समतल रखें, हथेलियों को अपने पैरों के पास रखें और अपने ऊपर उठाए जाएं।
3.धीरे से अपने हाथों को बीनता करें, अपनी उच्च पीठ को संजोएं, और अपने शरीर को एक सीधी रेखा में लाएं।
4.अपनी श्वास को सामान्य बनाए रखें, अपने आंतरिक ऊर्जा को संयमित और स्थिर रखें।
5.धीरे से ऊपर की ओर श्वास छोड़ें, अपने कंधों को जमीन से अलग करें और अपनी श्वासायाम विधि को समायोजित करें।
6.इस स्थिति में कुछ समय बिताएं, सांस को सामान्य करें और शांति महसूस करें।
लाभ:-
सेतुबंध आसन का नियमित अभ्यास करने से पीठ की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, पेट की ग्रंथियों को सक्रिय किया जाता है और संतुलन क्षमता में सुधार होता है। इसका अभ्यास शरीर की ढीलापन दूर करता है और शारीरिक असंतुलन को ठीक करने में मदद करता है। इसके साथ ही, यह न्यूरो-मस्कुलर कोऑर्डिनेशन को सुधारता है और मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है।
जानु शीर्षासन:-
जानु शीर्षासन, जिसे हिंदी में "जानु शीर्षासन" भी कहा जाता है, एक प्रमुख योगासन है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यह आसन सिर को जानु के पास लाने और शिरा नाडी को सक्रिय करने में मदद करता है। इस आसन के अभ्यास से मस्तिष्क की रक्षा होती है और मानसिक स्थिरता और शांति महसूस होती है।
जानु शीर्षासन को कैसे करें:-
1.मात्रासन की शुरुआत करें। अपने घुटनों को झुकाएं और अपने पैरों को पीठ के पास जमीन पर रखें।
2.अब अपने दाहिने पैर को अपने शरीर के साथ संगठित रखें और बाईं पैर को अपने बाहर की ओर मोड़ें, अपने कंधे के नीचे आ जाएं।
3.अपने दोनों हाथों को चटाई या तकरीबन आंतरिक जानु में रखें। आपके हाथों को सामान्य और सुस्थित रखें।
4.अपनी सांस को सामान्य रखें और अपनी दृष्टि को अपने नाभि या अंतर्दृष्टि पर संयमित करें।
5.धीरे से अपने पैरों के संगठन को बनाए रखें, अपने ऊपर की ओर श्वास छोड़ें और शांति में कुछ समय बिताएं।
6.धीरे-धीरे वापसी करने के लिए पूरे शरीर को धीरे-धीरे वापस लाएं, सांस छोड़ें और ध्यान बनाए रखें।
लाभ:-
जानु शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने से सिर की रक्षा होती है, शिरा नाडी सक्रिय होती है और मस्तिष्क को शांति प्रदान होती है। यह आसन भ्रमण नर्व को प्रोत्साहित करता है, मस्तिष्क की क्षमता को विकसित करता है, और मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है।
बृष्टि शीर्षासन:-
बृष्टि शीर्षासन, जिसे हिंदी में "बारिश शीर्षासन" भी कहा जाता है, एक उच्च और अग्रवाली योगासन है जो मुख्य रूप से शिरा नाड़ी और मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है। इस आसन के दौरान शिरा नाड़ी में प्रवाहित रक्त वर्धित होता है और यह मस्तिष्क को शक्ति, चेतना, और शांति प्रदान करने में मदद करता है। इस योगासन को करने के लिए अच्छी बालंस और शीर्षासन का अच्छा समर्थन आवश्यक होता है।
बृष्टि शीर्षासन को कैसे करें:-
1.योग मत के नीचे बैठें और अपनी ऊँगलीयों को बाल मंडली के पीछे बांधें।
2.अपने शीर्ष को बैल पर रखें, शिरा नाड़ी को ऊँचा करने के लिए आंतरिक बाल मंडली का सहारा लें।
3.आपके पैरों को धीरे से ऊपर की ओर उठाएं और सम्भव हो सके तो अपने पैरों को एक दीवार के ऊपर स्थिति में बांध लें।
4.आपके नाभि को शांत रखें और आपके पैरों की ऊँचाई को संतुलित बनाए रखें।
5.आपकी दृष्टि को आंतरिक आग के निर्देशित बिन्दु पर ध्यान केंद्रित करें।
6.सांस को सामान्य रखें और ध्यान बनाए रखें। ध्यान दें कि संतुलित बालंस और शीर्षासन के सही समर्थन के लिए सुरक्षा को ध्यान में रखें।
लाभ:-
बृष्टि शीर्षासन के अभ्यास से शिरा नाड़ी में प्रवाहित रक्त का विकास होता है, मस्तिष्क में ऊर्जा बढ़ती है, और मानसिक स्थिरता और शांति प्राप्त होती है। यह योगासन तनाव को कम करता है, मस्तिष्क की ऊर्जा को जागृत करता है, और मेंटल क्लैरिटी को बढ़ाता है।
विपरीत पदासन:-
विपरीत पदासन, जिसे हिंदी में "विपरीत पदासन" भी कहा जाता है, एक प्रमुख योगासन है जो पेशाब की प्रवृत्ति, अन्नद्वार की प्रवृत्ति, और शरीर की पाचन शक्ति को सुधारता है। यह आसन पेट की ग्रंथि, अग्नचक्र, मलद्वार, और गुदाद्वार को सक्रिय करने में मदद करता है। इसके अभ्यास से पाचन तंत्र मजबूत होता है और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।
विपरीत पदासन को कैसे करें:-
1.सीधे लेट जाएँ और अपनी पैरों को ऊपर की ओर उठाएँ, ताकि आपकी गुदाएं जमीन को छू सकें।
2. अपने हाथों को अपने पीठ के पीछे रखें और अपने कंधों को जमीन पर संभालें।
3.धीरे से अपने शरीर को उठाएं और अपने पेट को ऊपर की ओर बालें। आपकी शरीर की ऊँचाई कम होनी चाहिए।
4.अपनी दृष्टि को अंतर्दृष्टि पर स्थिर करें और सांस को सामान्य रखें।
5.इस स्थिति में कुछ समय बिताएँ, सांस को सामान्य रखें और ध्यान में रहें।
लाभ:-
विपरीत पदासन का नियमित अभ्यास करने से पाचन शक्ति सुधारती है, मलाशय और मलद्वार को सक्रिय करता है, और शरीर में ऊर्जा की संचार को सुधारता है। यह आसन अवसाद, तनाव, और थकान को कम करने में मदद करता है और मानसिक स्थिरता को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है।
उपविष्ट कोणासन:-
उपविष्ट कोणासन, जिसे हिंदी में "उपविष्ट कोणासन" भी कहा जाता है, एक प्रमुख योगासन है जो पैरों, जांघों, और गुदाएं को मजबूत करने के लिए फायदेमंद होता है। यह आसन पाचन तंत्र को सक्रिय करने, कमर को मजबूत करने, और आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करता है। इसका नाम इस आसन की स्थिति से लिया गया है, जिसमें आप उपविष्ट आसन की तरह बैठते हैं और अपने पैरों को एक खंभे की तरह बाहर की ओर रखते हैं।
उपविष्ट कोणासन को कैसे करें:-
1.योग मत पर बैठें और अपने पैरों को सीधा बाहर फैलाएँ। आपके पैरों को आपस में मिलाएँ या उन्हें थोड़ा दूर रखें, जैसा आपको सुविधा दे।
2.अपनी ऊंगलियों को पैरों के बाहर की ओर रखें और उच्च कोण में फैलाएँ। आपके पैरों की ऊंगलियों को चौड़ाई के साथ विस्तृत करने की कोशिश करें।
3.अब अपने हाथों को ऊपर उठाएं और आपके सिर के ऊपर ध्यान केंद्रित करें। ध्यान दें कि आपके हाथों का नीचा तराजू नहीं होना चाहिए।
4.ध्यान से सांस छोड़ें, आंतरिक शांति का अनुभव करें, और अपने दिमाग को खाली करें।
5.इस स्थिति में कुछ समय बिताएँ, सांस को सामान्य करें और ध्यान में रहें।
लाभ:-
उपविष्ट कोणासन का नियमित अभ्यास करने से पैरों की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, गुदा मजबूत होता है, और पाचन तंत्र सक्रिय होता है। इसके साथ ही, यह आसन शरीर की संतुलन शक्ति को विकसित करता है और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
नवकासन:-
नवकासन एक प्रमुख योगासन है जो पेशाब और अन्नद्वार से संबंधित मुद्दों को सुधारने के लिए लाभकारी होता है। इस आसन को करने से पेट की ग्रंथियों को सक्रिय किया जाता है और पाचन शक्ति में सुधार होता है। यह आसन पेट को कम करने, कमर को मजबूत करने, और संतुलित आंतरिक ऊर्जा को प्राप्त करने में मदद करता है।
नवकासन को कैसे करें:-
1.एक योगमाट पर लेट जाएँ।
2.अपने पैरों को ऊपर की ओर उठाएं और अपने उभरे हुए पेट को छूने के लिए हाथों की ओर बढ़ें।
3.अपनी ऊंगलियों को पैरों की ओर फैलाएँ और पैरों को बढ़ाएँ, अपने पैरों को सीधा रखें। ध्यान दें कि आपके पैरों की ऊंगलियाँ संयोजित होनी चाहिए।
4.धीरे से अपनी पीठ को अच्छी तरह से जमीन पर लगाएँ, और अपने बाएं हाथ को अपनी दाहिनी ओर ले जाएँ।
5.अपनी दृष्टि को आगे की ओर ध्यान केंद्रित करें।
6.ध्यान से सांस छोड़ें, शांति महसूस करें और अपने दिमाग को खाली करें।
लाभ:-
नवकासन का नियमित अभ्यास करने से पेट की ग्रंथियाँ सक्रिय होती हैं, पाचन शक्ति में सुधार होता है, और कमर मजबूत होती है। इसके साथ ही, यह आसन आंतरिक ऊर्जा को संतुलित करता है और शरीर को उच्च कोण से विकसित करता है।
बकासन:-
बकासन (Bakasana) योग का एक आसन है जो हाथों पर खड़ा होकर शरीर को समर्थित करने में मदद करता है। यह आसन हाथों, हाथपैरों, कंधों, पेट और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत बनाने, संतुलित बैठने की क्षमता को विकसित करने, मानसिक धृति और स्थिरता को बढ़ाने में मदद करता है। बकासना को "क्रौ चासन" भी कहा जाता है, क्योंकि इस आसन में आपके हाथों पर रखे जाते हैं और आपकी घुटनों के पास भूमि से ऊँचाई कम होती है।
बकासन करने का तरीका :-
1.सबसे पहले, मात्रासन (बालासना) की स्थिति में आएँ। इसके लिए, अपने घुटनों को जमीन पर रखें और अपने पेट को अपने ओढ़ने के समान अपने बायाँ जांघ के साथ सम्पर्क में लाएँ। अपनी सिर को भूमि पर लटकाएं और धीरे-धीरे सांस लें और ध्यान केंद्रित करें।
2.अपने हाथों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाएँ और उन्हें भूमि पर रखें। आपके हाथों को साइड की ओर मोड़कर अपनी पीठ के पास लाएँ।
3.अब धीरे-धीरे अपने शरीर का वजन अपने हाथों पर ढालें और अपने पैरों को उठाएँ।
4.जब आप शरीर को हाथों पर संतुलित कर लें, तो अपने पैरों को धीरे-धीरे ऊँचाई पर उठाएँ। ध्यान दें कि आपके गुदा ऊपर की ओर मुड़ा होना चाहिए और आपके घुटने अपने हाथों पर बैठें।
5.शरीर को स्थिर रखते हुए, ध्यान दें कि आपकी सांस धीरे और सामान्य रूप से बह रही हो। इस स्थिति में 15-30 सेकंड तक रहें।
\6.धीरे-धीरे अपने पैरों को नीचे लाएं और मात्रासन में वापस आएं।